नवरात्र में देवी को सोलह श्रृंगार सामग्री चढ़ाई जाती है साथ ही महिलाएं भी ये सिंगार करती हैं। सोलह श्रृंगार की परंपरा सदियों से चली आ रही है। हर युग और सभ्यता में श्रृंगार की चीजें बनाई गई थीं। जो पत्थर और कई तरह की धातुओं से बनी होती थी। ये आज भी खुदाई में मिलती हैं। काशी के पं. गणेश मिश्र का कहना है कि ऋग्वेद सहित पुराणों और स्मृति ग्रंथों में भी सोलह श्रृंगार का जिक्र हुआ है। कहा गया है कि ऐसा करने से सिर्फ सुदंरता ही नहीं सौभाग्य भी बढ़ता है।
पुरातन काल से ही महिलाओं को श्रृंगार करने की सलाह दी जाती रही है।
योगियों और ऋषि-मुनियों ने इनका महत्व बताया है। आज कुछ रिसर्च में भी ये बातें सामने आई हैं कि श्रृंगार की चीजें सेहत ठीक रखने में मददगार होती है। इनसे हार्मोन्स कंट्रोल होते हैं।
पं. मिश्र बताते हैं कि मां भगवती को प्रसन्न करने के लिए नवरात्र पर्व में सोलह श्रृंगार करने चाहिए और देवी को भी ये श्रृंगार की चीजें चढ़ानी चाहिए। लेकिन, लिपिस्टिक, पाउडर, आई लाइनर और नेल पॉलिश जैसी चीजें देवी को नहीं चढ़ानी चाहिए। केमिकल से बने इन कॉस्मेटिक्स का जिक्र ग्रंथों में भी नहीं किया गया है।
देवी के लिए सोलह श्रृंगार
देवी पुराण के मुताबिक नवरात्रि के दौरान मां को प्रसन्न करने के लिए उनका सोलह श्रृंगार किया जाता है। माता के श्रृंगार में लाल चुनरी, चूड़ी, इत्र, सिंदूर, बिछिया, महावर, मेहंदी, काजल, फूलों का गजरा, कुमकुम, बिंदी, गले के लिए माला या मंगलसूत्र, पायल, नथ, कान की बाली और कमर के लिए फूलों की वेणी का इस्तेमाल किया जाता है।
माता के श्रृंगार का महत्व
नवरात्र में माता को सोलह श्रृंगार चढ़ाना शुभ होता है। इससे सुख और समृद्धि बढ़ती है और अखंड सौभाग्य भी मिलता है। देवी को सोलह श्रृंगार चढ़ाने के साथ ही महिलाओं को भी खुद सोलह श्रृंगार जरूर करना चाहिए। ऐसा करने से मन प्रसन्न होता है और देवी कृपा भी मिलती है।
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