कहते हैं जहां बुद्धि और विवेक हो, वहां अमंगल नहीं होता। गणेश बुद्धि और ज्ञान के देवता हैं। इसलिए, जहां मंगल की कामना हो वहां पहले गणपति को बुलाया जाता है। गणेश आते ही विघ्नों का नाश करते हैं। आदि शंकराचार्य का स्पष्ट मत था कि ज्ञान के बिना मुक्ति संभव नहीं है, “भज गोविंदम्, भज गोविंदम्” भजन में भी कहा है कि “ज्ञानविहीनः सर्वमतेन, मुक्ति न भजति जनमशतेन।“ यानी अज्ञानी को सौ जन्म लेने पर भी मुक्ति संभव नहीं है। गणेश हिंदू पूजा पद्धति में इस कारण और भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाते हैं, क्योंकि उनका आह्वान जीवन में ज्ञान के प्रकाश को लाने जैसा है।
जीवन का आधार ज्ञान है। गणपति के बिना ज्ञान संभव नहीं। कारण है, इंसान के शरीर में सात चक्र होते हैं, मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्धि, आज्ञा और सहस्रार। इन सात चक्रों में पहला चक्र मूलाधार है, जो हमारे शरीर में रीढ़ की हड्डी के आखिरी भाग के रुप में गुप्तांगों के ऊपर होता है। इसे ही कुंडलिनी कहते हैं। बिना गणपति के कुंडलिनी जागरण संभव नहीं है। मूलाधार शब्द से ही स्पष्ट है कि जो मूल आधार है।
खासियत ये है कि इस चक्र का आकार भी गणपति की तरह ही होता है। ये ही ज्ञान व शक्ति का केंद्र होता है। अगर शरीर में शक्ति और पराशक्ति को जागृत करना है, तो इसको जगाना आवश्यक है। शक्ति इसी कुंडलिनी में है, यहीं से उठकर शेष पांच चक्रों को भेदती हुई ये सहस्रार पर आती है। जब कुंडलिनी शक्ति मूलाधार से निकलकर सहस्रार पर आ जाती है, समझो जीवित अवस्था में ही परमात्मा का दर्शन हो गया। इस बात को योग भी स्वीकार करता है।
- क्या करें इस बार गणेश उत्सव में
तो फिर गणेश उत्सव क्या है? ये दस दिन, अपने भीतर ही परमात्मा को देखने की कोशिशों को शुरू करने के दस दिन हैं। गणेश की आराधना संकट दूर करती है। उन्हें विघ्ननाशक भी कहा जाता है। समझने वाली बात है, विघ्न और संकट दूर कैसे होते हैं, बुद्धि और बल से। बुद्धि और बल किससे हैं, स्पष्ट है बाहरी लोक में गणेश और शरीर के भीतर मूलाधार चक्र से। कहने का अर्थ है, हर जगह सिर्फ गणेश से।
गणेश चतुर्थी का पर्व सिर्फ घर या पंडालों में गणपति की मूर्तियां बैठा कर उत्सव मनाने का त्योहार नहीं है, बल्कि अपने शरीर के भीतर मौजूद मूलाधार रूपी शक्ति और ज्ञान के चक्र को जागृत करने का भी है। हमारे जीवन में गणपति का आगमन तभी होगा, हम ज्ञान और शक्ति के उपार्जन का सामूहिक प्रयास करेंगे। अगर भारत वर्ष में देखा जाए तो महाराष्ट्र गणेश का स्थान है, लक्ष्मी की भूमि है।
आर्थिक राजधानी मुंबई अर्थ व्यवस्था की मूलाधार है। गणेश किसी राज्य या शहर का मामला नहीं है, आपको परमात्मा को पाने की चाहत है, दर्शन की अभिलाषा है तो गणेश ही प्रथम सीढ़ी हैं। गणेश मनाइए, शेष सब मान जाएंगे।
इस गणेश उत्सव से शुरू करें ये तीन काम
गणपति को मनाना कोई मुश्किल काम नहीं है। भोले नाथ के पुत्र स्वभाव में उन्हीं पर हैं। जल्दी प्रसन्न होना उनका गुण है। तरीका सही हो तो गणपति की कृपा मिलनी तय है। तीन काम अपनी आदत में डाल लें।
- रोज कुछ देर ध्यान करें
कोशिश करें कि थोड़ी देर रोज ध्यान में रहें। मन को नियंत्रित कर कम से कम 5 मिनट गणपति के आगे बैठें। धीरे-धीरे समय बढ़ाते जाएं। ध्यान के समय पूरा मन मूलाधार चक्र (रीढ़ की आखिरी हड्डी, गुप्तांगों के ऊपर की ओर) पर केंद्रित करें। मौन रहकर ध्यान मुश्किल लगे तो श्री गणेशाय नमः मंत्र का सहारा लें। मन ही मन मंत्र बोलते हुए ध्यान लगाएं।
- स्वाध्याय की आदत डालें
खासतौर से रात को सोने के पहले किसी धर्मग्रंथ के कम से कम दो पन्ने पढ़ें और उस पर चिंतन करें। स्वाध्याय ज्ञान के द्वार खोलता है। ध्यान शक्ति के संचार का माध्यम है। रोज पढ़ने की आदत आपको चिंता मुक्त भी रखेगी और नींद भी अच्छी देगी, साथ ही ज्ञान पाने की इच्छा को प्रबल भी करेगी।
- माता-पिता का आशीर्वाद लें
रोज सुबह स्नान के बाद घर से निकलने से पहले माता-पिता के चरण स्पर्श जरूर करें। गणपति ने माता-पिता को ही पूरा ब्रह्माण्ड माना है। जो माता-पिता का सम्मान नहीं करते, उनसे गणेश किसी भी पूजा-पाठ से प्रसन्न नहीं होते। ये आदत परिवार में अच्छे संस्कारों की नींव तो डालेगी ही, आपके परिवार में प्रेम और सम्मान की भावना में बढ़ोत्तरी होगी।
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